बदलते रिश्ते लेखक - डॉ.राजेश टंडन

बदलते रिश्ते

दृश्य 1

(पार्टी का दृश्य। करीब 15 लोग पार्टी में हैं। चहल-पहल, खाना-पीना। लोग दो-दो या तीन तीन के ग्रुप में आपस में बातें कर रहे हैं। कोल्ड ड्रिंक्स के ग्लास कुछ हाथों में हैं। कुछ बच्चे इधर उधर दौड़ रहे हैं।)

पुरुष1- अच्छा इंतजाम किया है मनू और साधना ने।

पुरुष2- हाँ पर मनू दिख नहीं रहा।

पुरुष3- पूछा था कहीं गया है…आता ही होगा।

कनक- बताओ साधना ने पार्टी दी है।

ज्योति- समझ में नहीं आता जो पार्टी देने के नाम से ही किनारा कर लेती है..वही आज पार्टी दे रही है।

आरती- पर साधना पार्टी क्यो दे रही है?

ज्योति- जा ना उसी से पूछ…..

आरती- (इधर उधर पूछती है फिर आरती के पास जाती है।) प्लीज साधना बताओ ना तुम ये पार्टी किस खुशी में दे रही हो।

साधना- आज होम कंिमंग सेरेमनी है।

आरती- होम कंिमंग सेरेमनी! पर तुम्हारे घर में नया कौन आ रहा है?

साधना- ये एक लंबी कहानी है। बात उस समय की है जब…………………

 

फ्लैश बैक………..

 

दृश्य 2

 

(किसी आलीशान ड्राइंगरूम में 6 महिलाएँ बैठी है। शरबत के ग्लास टेबल पर रखे हैं। आधे-पूरे भरे हुए। हाथों में ताश के पत्ते हैं। म्यूजिक (क्लासिकल) धीमे धीमे 

बज रहा है। एक महिला का मोबाइल बजता है, वो बातें करती हैं।)

ज्योति – ..हाँ मिसेज अग्रवाल, लेकिन आज क्यांे नहीं आई…अच्छा ऐसा…ठीक है..यहाँ तो साधना आज दाँव पे दाँव जीत रही है। हाँ-हाँ पार्टी तो उससे ले ही लेंगे। वैसे भी कोई ना कोई बहाना चाहिये बस पार्टियाँ होती रहें।

बिल्कुल ठीक कहा आपने ये पार्टियाँ न हों तो समय काटना मुश्किल हो जाये। हाँ.. (हंसती है) वैसे भी मिसेज अग्रवाल इतनी समाज सेवा करने के बाद कुछ तमसंगंजपवद भी तो चाहिये। अच्छा मैं सबको बता देती हूँ..कल का फिर तय है ना..ओ.के…बाय।

हाँ भई वो विकलांगों वाली जतपबलबसमे आ गई हैं। कल का प्रोग्राम तय हो गया है। मिसेज चोपड़ा मुख्य अतिथि होंगी और कार्यक्रम कल सुबह 11.00 बजे शांति सभागार में होगा।

विनीता- छिः भई 11.00 बजे क्यो रखा है, दिन भर धूप में तपना पड़ेगा। वैसे भी मुझे बहुत जल्दी ेनदइनतद हो जाता है।

शोभना- विनीता तुम कोई अच्छी सी ेनदेबतममद बतमंउ लगा लेना पर…

विनीता- मैं अच्छी वाली ेनदेबतमंद ही लगाती हूँ, अमेरिका से मेरे अंकल ने भेजी थी।

ज्योति- छोड़ो शोभना-विनीता, पिछली बार कंबल बाँटने वाले कार्यक्रम में ही तय हो गया था कि अगला कार्यक्रम सबेरे ही करेंगे। ये मुए प्रेस वाले रात के  कार्यक्रम को ठीक से कवरेज नहीं देते।

राजश्री- बिल्कुल सही कहा ज्योति तुमने। पछिली बार तो इतना खराब लगा था, रात 11.00 बजे फुरसत पाये थे। पार्टी में भी नहीं जा सके और सुबह अखबार में 

20 लाइन की छोटी सी न्यूज थी, फोटो भी अच्छी नहीं छपी थी।

ज्योति- हाँ फोटो में सुनंदा ऐसी लग रही थी जैसे वो भिखारी को कंबल नहीं दे रही बल्कि भिखारी उसको कंबल दे रहा हो। 

(सब हंसते हैं)

आरती- इस बार लेकिन कवरेज अच्छा मिलना चाहिये और फोटो वो वाली छपवाना जिसमें मैं भी दिखूँ। घर में सब कहते हैं दिन रात समाज सेवा का काम करती हो, पर अखबार में तुम छपती ही नहीं।

शोभना- लो भई अब आरती को भी छपास रोग लग गया।

ज्योति- तो क्या गलत कर रही है आरती…देखो शोभना..हम लोग कई कई घंटे घर से बाहर रहते हैं, लोग अखबार में हमारे बारे में पढ़ते हैं तो हमारा घर से बाहर रहना रनेजपलि तो होता है।

राजश्री चलो ठीक है, इस बार मैं गारंटी लेती हूँ, न्यूज अच्छी-बड़ी छपेगी और सभी अखबारों में छपेगी।

आरती- वो भी बड़ी-बड़ी फोटो के साथ।

शोभना- बिल्कुल…बड़ी बड़ी फोटो और फोटो में आरती का बड़ा सा क्लोजअप।

राजश्री- लेकिन पहले हम तय कर लें कौन कौन ट्राइसायकिल बाँटेगा।

विनीता- हाँ-पहले से ये सब तय हो जाना चाहिये। बाद में फालतू टेंशन होता है।

शोभना- हाँ भई सब कुछ पहले ही तय हो जाए। पिछली बार सबसे ज्यादा चंदा मैंने दिया था लेकिन बाँटते समय सबसे कम कंबल मेरे हिस्से में आये थे। ऐसे में तो दिमाग खराब होगा ही।

ज्योति- सड़ी हुई चीज़ भी खराब होती है।

शोभना- क्या?…देख ज्योति…..

ज्योति- जस्ट जोकिंग यार…..

कनक- हे भगवान तुम तो..बिल्कुल…

आरती-(ताश में साधना जीतती है) ये भी साधना जीती। 900 पाइंट्स हो गये, चलो भई पत्ते बाँटो।

आरती- छोड़ो ये सब..साइकिलों का तय करें।

ज्योति- तय क्या करना है, दस साइकिलें हैं। हम सातों एक-एक बांटेंगे, मिसेज अग्रवाल एक साइकिल और मुख्य अतिथि मि.चोपड़ा भी एक

राजश्री- तब भी आठ साइकिलंे ही हुईं…दो साइकिलें बचीं……वो कौन बांटेगा?

कनक- अरे मुख्य अतिथि को दो साइकिलें बांटने दो। छोटी छोटी बातों का बतंगड़ नहीं बनाना चाहिये। हम सब समाज सेवकिाएँ हैं, हमारा धर्म है सेवा करना न कि छोटी छोटी बातों पर बहस करना, क्यों साधना।

शोभना- हाँ साधना तुम तो कुछ भी नहीं बोल रहीं क्या बात है?

साधना- कुछ नहीं ऐसे ही बस।

आरती- बस क्या कुछ तो बात है….छुपा रही हो…

साधना- कुछ नहीं छुपा रही… थोड़ी थकान है 

विनीता- ऐसा क्या कर लिया कि थकान हो गई। (आँख मारती है)

आरती- ऐसा नहीं कहते विनीता, देख नहीं रही बेचारी बड़ी उदास लग रही है। क्या हुआ    साधना बताओ ना, मन हल्का हो जायेगा।

ज्योति- किसका मन हल्का होगा साधना का कि तुम्हारा।

आरती- तुम भी बस…मैं तो यूं ही पूछ रही थी….बताओ साधना।

साधना- अब ऐसा है कि तुम लोग…खैर छोड़ो…हटाओ….फैमिली मैटर्स को क्या डिसकस करना। छोड़िये…ताश का गेम फिर शुरू करते हैं।

शोभना- तो ये बात है…ताश का खेल बंद हुआ तो साधना का मुँह भी बंद।

राजश्री- अच्छा खासा जीत रही थी, नुकसान हो गया..बेचारी

(साधना घूर कर देखती है। पत्ते बंटते हैं)

आरती- साधना बताओ ना क्या बता रही थी।

कनक- अब बता भी दो वरना आरती को कब्ज हो जायेगा।

आरती- छी भई कैसे हो आप सब ..सुनने भी नहीं देते।

साधना- बात दरअसल ये है मेरे ससुर की तबियत कुछ ठीक नहीं चल रही।

विनीता- वो तो पिछले डेढ़ महीने से बीमार हैं।

साधना- हाँ, पहले तो गठिया और वो स्पॅान्डिलाइटिस ही था अब तो दमे की भी शिकायत हो गई है। दिन रात खाँसते हैं

आरती- तब तो तुम लोगों को बहुत कपेजमतइंदबम होता होगा ना।

ज्योति- उनको थोड़ा दूर वाले कमरे में क्यो नहीं रख देते।

शोभना- मैं तो कहती हूँ कुछ पैसे ढीले करो और उन्हें वसक चमतेवदेश् ीवनेम यानि वृद्धाश्रम में भेज दो, वहाँ अच्छे से देखभाल होती है।

कनक- हाँ पिछली बार हम लोग जब वसक चमतेवदेश् ीवनेम गये थे तो मैंने अपने हाथों से सारे ओल्ड लोगों को तिनपजे खिलाये थे।

राजश्री- हाँ अखबार में पढ़ा थी….सबको दो दो केले बांटे थे इसने।

साधना- लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सकती। मेरा मन नहीं मानता। इकलौते ससुर हैं, समाजसेवा के साथ-साथ थोड़ी उनकी भी सेवा हो जाती है। कुछ परेशानी ही तो होती है, पर मन को सुकून बहुत मिलता है।

विनीता- साधना को तो समाजसेवा का राष्ट्रीय पुरस्कार मिलना चाहिये।

साधना- ना ना ना ऐसा मत कहो विनीता..सेवा भावना अंतरात्मा में होनी चाहिये… पुरस्कार का भला उससे क्या लेना देना।

आरती- राष्ट्रीय पुरस्कार न सही अपने क्लब की तरफ से साधना को सम्मानित कर 

देते हैं।

साधना- इसकी भी क्या जरूरत है….वैसे तुम लोग जैसा ठीक समझो….मैं चलूँ…..ससुर जी के लिये दवाइयाँ खरीदनी हैं। (जाती है) और हाँ विनीता आज के 11000 पाइंट्स हो गये, नोट किया ना। 

विनीता- 10700 हुए हैं, नोट कर लिया है।

साधना- एक ही बात है, चलो ठीक है..चलती हूँ…बाय।

शोभना- बताओ ससुर की इतनी सेवा कर रही है।

राजश्री- आजकल ऐसे लोग मिलते कहाँ हैं

आरती- क्या सेवा भावना है…साधना में

ज्योति- कुछ नहीं है…कोई सेवा भावना नहीं है, वो तो सच मैं जानती हूँ।

आरती- क्या है हमें भी बताओ ना ज्योति

ज्योति- सब ढोंग है …वो तो मैं जानती हूँ साधना को भी उसके ीनेइंदक को भी। आज यहाँ भी आती है तो बस किटी चोलने…पार्टी की बात करो तो चंपत हो 

जाती है।

आरती- लेकिन क्या बता रही थी….. वो सच वाली बात……वो बताओ ना।

ज्योति- अरे तुम भी यार…जरा भी सब्र नहीं है तुममें….वो उसके ससुर की काफी भारी चतवचमतजल है न्ण्च्ण्में। अभी वो चतवचमतजल साधना लोगों के नाम नहीं हुई है, इसीलिये वो नाटक करती है ससुर सेवा का समझी.

आरती- ओ हो…अब समझी।

सब- ओ हो….आरती समझ गई।

आरती- छी भई।

 

दृश्य 3

 

(एक कमरा जो आलीशान ड्राइंग रूम से जुड़ा है। कमरे में एक तखत पर एक बुजुर्ग व्यक्ति लेटा है। बीच बीच में खंासता है। एक टेबल और एक कुर्सी है। टेबल 

में ढेर सारी दवाइयाँ रखी हैं। एक गिलास और एक पानी का जग रखा है। साधना 

अंदर आती है।)

साधना- लीजिये आपका खाना। यहाँ टेबल पर रख दिया है। 

पिता- (खांसते हुए) ….खों..खों…खों धन्यवाद, शुक्रिया, ज्ींदा लवन

साधना- आप हमेशा ऐसे ही क्यों तमंबज  करते हैं?

पिता- (खांसता है) और कैसे तमंबज  करूँ, इतनी तकलीफ है  ऊपर से तुम दोनों का सुलूक।

साधना- अब मैंने क्या किया है- आप के लिये क्या नहीं करती मैं। समय पर खाना, चाय, दवाई……………..

पिता- तभी तो हर बार धन्यवाद देता हूँ। मनू तो मेरा चेहरा भी देखना पसंद नहीं करता……… हाथ पाँव काम नहीं करते, ऊपर से दमा तो दम निकाले दे रहा है।

साधना- आप भी तो कोशिश नहीं करते, केवल दवाओं से कभी कोई ठीक हुआ है।

पिता- नहीं करता कोशिश…….क्या करूँगा ठीक होकर……मनू को मेरी जायदाद चाहिये, पट्ठा इंतजार कर रहा है मेरे रुखसत होने का- (खंांसता है) उसकी भी किस्मत खराब है…..

साधना- फिर शुरू हो गये…….ये सब छोड़िये…खाना रख दिया है, पानी भी है। भूख लगे तो खा लीजियेगा। मैं और मनू बाहर जा रहे हैं, देर से लौटेंगे।

पिता- रोज की बात है, इसमें नया क्या है…… फिर भी धन्यवाद….बताने के लिये खों…खों…रोज रोज रात में…

साधना- हाँ जाते हैं, जरूरी है इसलिये जाते हैं….. पार्टी में.. अपने लिये थोड़ा सा समय वो भी रात में, उसमें भी………….. दवाइयाँ ले आई हूँ,  चलिये ख लीजिये। (जाती है)

पिता- टेबल पर रख दो खा लूंगा।

साधना- खुद खा लेंगे।

पिता- हाँ हाँ हाँ खुद खा लूंगा….तुम लोगों को पार्टी में देर हो जायेगी…जाओ। (खांसता है)  (आरती कुछ देर ससुर को देखती है फिर चली जाती है)

 

दृश्य 4

 

(एक चोर खिड़की से अंदर आता है। यहाँ-वहाँ देखता है। एक आध दराज वगैरह खोलता है। सीढ़ियों से मनू (साधना का पति) फोन पर बातें करते हुए नीचे उतर रहा है उसे देखकर छिपता है।)

मनू- (फोन पर) हाँ हाँ डील कैंसल कर दो…क्या…नहीं हो सकता। भई वैसे ही 65 लाख का लोन सिर पर है और कितना लूँगा। नहीं नहीं वो डील कैंसल कर दो……. हाँ वो ज़मीन है मानता हूँ। करोड़ों की है। अभी पिताजी है यार….उनके बाद..

…..फिर बताया ना 25-30 लाख का तो लोन ही ले रखा है….गले तक कर्जा 

है यार…

(बात करते करते चोर की दिशा में आगे बढ़ता है चोर धीरे से दरवाजा खोल कर पिता के कमरे में दाखिल हो जाता है) चंतमसंस ेीवजे

मनु- हाँ तो रायजादा के यहाँ तो पार्टी में आ रहे हो ना, वहीं बातें करते हैं।

पिता- कौन है…कौन है भई (खांसता है)

चोर- चुप बिल्कुल चुप…बोले तो गोली मार दूंगा (पिस्तौल निकालता है)

पिता- अरे भई तुम कौन हो…क्या चाहिये।

चोर- धीरे धीरे बोलो

पिता- अरे जोर से बोलूंगा, तो भी यहाँ कोई नहीं आयेगा। (खांसता है)

मनू- साधना…ओ साधना ………………….यार जल्दी करो।

(साधना आती है)

साधना- चलिये

(दोनों जाते हैं, चोर थोड़ा सा दरवाजा खोलकर उन्हें जाते हुए देखता है फिर पिता से बोलता है)

चोर- ींदके नच हाथ ऊपर करो 

पिता- नहीं कर सकता

चोर- हाथ ऊपर नहीं तो गोली मार दूंगा

पिता- ऐसा- तो गोली मार दो, हाथ ऊपर नहीं करता जाओ।

चोर- बकवास नहीं..चुपचाप वहीं पड़े रहो, हिलना मत

पिता-  बिना हिले डेढ़ महीने से ऐसे ही पड़ा हूँ भाई।

चोर- श् श् श्…….धीमे बात करो वरना…

पिता- (जोर से) वरना क्या…जोर से बोलूंगा तो क्या क्या करेगा। गोली मार देगा….तो मार गोली।

चोर- श् श् श् ………चसमंेम धीरे कोई आ जाएगा।

पिता- कोई नहीं आयेगा। जितना चीखो-चिल्लाओ, रो-गाओ कोई नहीं आयेगा..यहाँ कोई नहीं आयेगा। खों खों खों पानी…पानी…पानी 

(चोर जग उठाता है। पिस्तौल हिचकते हुए टेबल पर रखता है।)

चोर- देखो कोई चालाकी करने की कोशिश नहीं करना। मैं सब समझता हूँ, जरा सी भी गलत कोशिश की तो मैं तुम्हें गोली मार दूंगा।

पिता- गोली मार दूंगा….गोली मार दूंगा…अरे मार दे ना गोली। इस जिल्लत भरी जिंदगी से तो मौत बेहतर है।….खों…खों… 

(चोर उसे सहारा देकर पानी पिलाता है)

चोर- और कोई नहीं है घर में।

(पिता गहरी सांस लेता है)

चोर- वो कौन था जो अचानक ऊपर से नीचे आ गया था फोन पर बातें करते हुए।

पिता- मनू…मेरा बेटा।

चोर- क्या करता है वो

पिता- इंतजार

चोर- किस बात का इंतजार

पिता- मेरे मरने का….मेरे मरने के बाद प्रॉपर्टी का बंटवारा करेगा। अपना हिस्सा चाहिये उसे…वो भी जल्दी…ओह…आह…..(कराहता है) 

चोर- तकलीफ क्या है तुमको।

पिता- वो दवाई भी दे दो…पानी भी…चंपद ापससमत है, कुद आराम मिलेगा। मुझे गठिया है, स्पॉडिलाइटिस भी है।

चोर- (दवा पानी देते हुए) इतने सारे रोग। गठिया में तो बहुत दर्द होता है।

पिता- बहुत- बहुत दर्द होता है।

चोर- मैं जानता हूँ…मेरे बाबूजी को था। मैं बहुत छोटा था, लेकिन उनकी चीखें आज भी कानों में सुनाई देती हैं।

पिता- अच्छा!

चोर- हाँ बहुत कष्ट सहा उन्होंने।

पिता- लेकिन सेवा करने वाले तो थे। यहाँ तो …………..

चोर- कौन था…मैं बहुत छोटा था और माँ मुझे पैदा करते ही छोड़ गई थी।

पिता- अरे…..फिर

चोर- फिर क्या….जब सेवा करने के लायक हुआ पिताजी ने मौका नहीं दिया, छोड़कर चले गये। गठिया का दर्द बहुत बुरा होता है। 

पिता- ऊपर से स्पॉन्डिलाइटिस और जहाँ दमा ने जोर मारा, खांसी आई तो समझो पूरे जिस्म में लहर दौड़ती है दर्द की। (धीरे से खांसता है)   

सुनो टेबल क्लॉथ के नीचे 400 रु. हैं और मेरे तकिये में 120 रु. पड़े हैं…ले लो। ऊपर बेटे के कमरे में कैश नहीं मिलेगा…हाँ सामान चाहिये तो काफी 

मिल जायेगा…..पट्ठे ने किश्तों में काफी सामान खरीद लिया है।

चोर- तुमने अपनी बीमारियों का कोई देशी इलाज किया है।

पिता- जब तक हाथ पांव चले, काफी इलाज किया, पर पिछले डेढ़ महीने से बिल्कुल ही पड़ गया हूँ।

चोर- बेटा-बहू…..

पिता- बेटा तो मेरे रुखसत होने के इंतजार में है और बहू का अपना एक क्लब है, समाजसेवा करती है- ना जाने कौन से समाज में किसकी सेवा करती है।

चोर- एक देसी इलाज है गठिया का। मैं जानता हूँ एक आदमी को……… 40 किलोमीटर दूर लल्लनपुर मंे रहता है रामनरेश। अगर मेरी मानो तो उसे 

दिखा लो।

पिता- हूं

चोर- चित्रकूट में शरदपूर्णिमा के दिन दमा की दवाई मिलती है, खीर में बना कर देते हैं। बहुत लोगों को फायदा हुआ है, उसे भी आजमा सकते हो।

पिता- हूं…आ…आ….ओ हो  हो बहुत जोर का दर्द उठा है कमर में 

चोर- उल्टा लेटो, मैं थोड़ा दबा देता हूँ। थोड़ा बहुत नस बिठाना जानता हूँ। वैसे वो काम नहीं आयेगा- फिर भी हाँ..उल्टा लेटो…दबाने से थोड़ा आराम मिल 

जायेगा। 

(उल्टा लिटा कर दबाता है)

पिता- (सीधे होते हुए) आह थोड़ा आराम तो मिला। तुम..तुम खड़े क्यों हो…बैठो… बैठो..वो कुर्सी ले लो।

चोर- नहीं ऐसे ही ठीक है, बल्कि तुम कुर्सी पर बैठो, लेटे लेटे ऊब गये होगे।

पिता- हाँ हाँ चलो कोशिश करते हैं 

(चोर सहारा देकर उसे उठाकर कुर्सी पर बिठाता है)

पिता- मजा आ गया। जमाने बाद कुर्सी पर बैठा हूँ। लेटे लेटे मन भी कमजोर पड़ जाता है। सुबह शाम नौकर आता है। टट्टी-पेशाब करवा देता है। रोज के 30 रु. ले जाता है। अब बीच में जरूरत पड़े तो थूक तोंद में लगानी पड़ती है।

(हंसता है फिर खांसता है) तुमने कुछ खाया।

चोर- अभी अभी तो निकला था। सीधे यहीं आ गया।

पिता- चलो फिर खाना खाते हैं। चार रोटियाँ हैं दो तुम दो मैं।

चोर- अरे आप खाइये।

पिता- अरे आओ साथ में खाते हैं, आधा-आधा, मजा आ जायेगा। 

(दोनों साथ में खाते हैं)

एक बात है, साधना में एक गुण तो है, खाना अच्छा बनाती है।

चोर- साधना कौन?

पिता- मेरी बहू।

चोर- हूं ठीक कहते हो, छोले तो बहुत बढ़िया बने हैं।

पिता- वैसे वो बहुत ज्यादा बुरी नहीं है। अब बेटा ही ऐसा करेगा तो वो काहे पीछे रहे।

चोर-  एक ही बेटा है तुम्हारा?

पिता- नहीं दो। दूसरा अमेरिका में है। वो ठीक है, खोज खबर लेता रहता है। पर क्या करे मुझे वहीं बुला नहीं सकता। नौकरी ही पक्की नहीं है…लो छोले और ले लो। प्याज के साथ अच्छे लगते हैं।

चोर- तो फिर क्या सोचा।

पिता- किस बारे में।

चोर- वो गठिया का इलाज जो मैंने बताया।

पिता- देखेंगे- अब कौन लेकरजायेगा वहां मुझे।

चोर- मैं..मैं हूं ना। किसी भी दिन चले चलते हैं

पिता- ऐसा…. चलो सोचते हैं…तुम मूंग दाल लोगे?

चोर- दाल…वो भी है क्या?

पिता- अरे वो दाल नहीं। पैकेट वाली मिक्शचर वाली मूंग दाल, वो किताब के पीछे रखी है। 

(चोर निकालता है)

चोर- तुम्हारे बेटा-बहू तो नहीं आ जायेंगे।

पिता- वो पूरे दिन में तीन बार आते हैं। दोपहर 1.00 बजे, रात 11.00 बजे और सुबह 4.00 बजे।

चोर- सुबह चार बजे…!!वो ..वो मॉर्निंग वॉक पर जाते है?

पिता- अरे कहाँ मॉर्निंग वॉक। लेट नाइट पार्टी से वापस आते हैं। सुबह देखते हैं कि बुड्ढा जिंदा है या निपट गया। (हँसता है) कलयुग में मांगने से कम्बख्त मौत 

भी नहीं मिलती।

चोर- ओह!

पिता- वैसे आज बहुत अच्छा महसूस कर रहा हूँ।

चोर- थोड़ा हाथ पैर हिलाते रहोगे तो बॉडी फ्री होगी।

पिता- हाँ, साधना भी यही कहती है।

चोर- लाओ बर्तन दो ….मैं रख देता हूँ।

पिता- मैं भी कोशिश हूँ….ओह…..

चोर-क्या हुआ?

पिता- होना क्या है….वही पुराना दर्द

चोर- (बर्तन रखता है) मेरी मानो तो थोड़ा हाथ पैर हिलाओ…ऐसे (दिखाता है) ऊपर फिर नीचे… थोड़ा थोड़ा करो तो आराम मिलेगा।

पिता- सही कहते हो लेटे लेटे तो सारा शरीर जाम हो गया है।

चोर- ये कैरम किसका है

पिता- मेरा

चोर- तुम कैरम खेलते थे

पिता- कैरम..कैरम का तो मैं चैंपियन था। अच्दे अच्छे मेरे सामने टिक नहीं पाते थे।

चोर- फिर वही खेल लिया करो। थोड़ी म्गमतबपेम भी हो जायेगी और मन भी बहल जायेगा।

पिता- (हंसता है फिर खांसता है)खो खो..हा हा हा क्यों मजाक करते हो यार! कैरम खेलूँ..वो भी अकेले..और फिर कंधा-कोहनी तो पूरी तरह खुलते नहीं। उंगलियाँ कैसे हिलेंगी।

चोर- कोशिश तो करके देखो।

पिता- अरे यार मनू मेरा बेटा जब छोटा था हम दोनों बाप बेटे खूब खेलते थे। वो बढ़िया खेलता है, पर मेरे से अच्छा नहीं। वैसे वो अब भी खेलता है क्लब मेे। 

सुना है दो बार चैंपियनशिप जीत चुका है।

चोर- अच्छा! और तुम्हारी बहू…वो भी खेलती है?

पिता- पता नहीं..पर मनू को कैरम खेलते देख कर खुश बहुत होती है।

चोर- मेरी मानो तो जीवन में थोड़ा बींदहम लाओ। खुश रहो..आनंद लो…बेटा बहू को साथ जोड़ो (तभी कुछ आवाज आती है) लगता है तुम्हारे बेटा बहू आ 

गये..मुझे चलना चाहिये।

पिता- रुको…..अभी वो कहाँ आयेंगे..सुबह होने में अभी देर है।

चोर- फिर भी….काफी रात बीत चुकी है…मैं चलता हूँ

पिता-  जैसा तुम ठीक समझो…हाँ…अपनी वो पिस्तौल लेते जाना।

चोर- मैं शर्मिंदा हूँ, वाकई शर्मिंदा हूँ (पिस्तौल उठाता है) वो शुरूवात में मैंने आप पर पिस्तौल तानी थी…कुछ गलत कह दिया था….सॉरी…वैसे पिस्तौल नकली 

है। धंधा ऐसा है कि रखनी पड़ती है। मैं चलूँ

पिता- अब जैसी तुम्हारी मर्जी। मैं कौन होता हूँ।

चोर- अरे ऐसा नहीं है……….. वैसे आपसे मिलकर बहुत अच्छा लगा, शायद बचपन याद आ गया।

पिता- कल फिर आओगे ना…

चोर- आ जाऊँ!

पिता- हाँ काफी अच्छा समय बीता। कल आ ही जाना।…मगर आओगे कैसे…

चोर- जैसे आज आया था………खिड़की से….

पिता- नहीं …नहीं..कल खिड़की से नहीं दरवाजे से आना।

चोर- बेटा बहू कुछ ऐतराज करें तो…

पिता- बोल देना शर्मा जी का दोस्त हूँ। देख लेना जो भी दरवाजा खोलेगा, ये सुनते ही मुँह बिचका कर मेरे कमरे की ओर इशारा कर देगा। न नमस्कार..न चमत्कार।

 

दृश्य 5

(हॉल की घंटी बजती है। बेटा-बहू दोनों ड्राइंग रूम में चाय पी रहे हैं। बेटा दरवाजा खोलता है।)

मनू- कहिये किससे मिलना है।

चोर- शर्मा जी से..मैं उनका पुराना दोस्त हूँ।

(बेटा मुँह बिचकाता है और पिता के कमरे की ओर इशारा करता है। चोर कमरे में जाता है और बेटा वापस सोफे पर बैठ जाता है)

साधना- ये कौन डैड के दोस्त आ गये।

मनू- मालूम नहीं पहली बार देखा है……शक्ल और कपड़ों से तो कोई उचक्का लग रहा था।

साधना- होगा…अपने को क्या। डैड का थोड़ा टाइम पास हो जायेगा। 

मनू- लेकिन हमको आधे घंटे में निकलना है माथुर साहब के बेटे के बर्थडे में और तब तक डैड के दोस्त न गये तो?

साधना- आप डैड से पहले से बात कर लीजिये। उनके दोस्त समझदार होंगे तो जल्दी निकल लेंगे।

मनू-  पहले क्या बात करना, जाते समय बता देंगे। वो खुद उठकर दरवाजा तो बंद नहीं कर सकते। उनके दोस्त को जाना ही होगा।

साधना-  ठीक है तुम तैयार तो हो (घड़ी देखती है)

(अंदर कमरे में चोर उनको हाथ पैर की कसरत करवा रहा है)

चोर-    हाँ हाँ बस थोड़ा ऊपर फिर नीचे ….दोनों हाथ करो….

पिता-  ओह….बड़ा दर्द होता है।

चोर-    बस थोड़ा सा दर्द होगा फिर आराम मिलेगा।

पिता-  आराम तो तुमसे मिलने के बाद ही मिला है। यार जमाने के बाद किसी से भर पेट बातें की हैं। आधी तकलीफ तो वैसे ही खत्म हो गई समझो। आह…

थोड़ा आराम से दबाओ, दर्द होता है।

चोर-   तुम्हारे बेटा-बहू गये नहीं अब तक।

पिता- बस जाते ही होगे-टाइम हो गया है- मुझे लेट जाना चाहिये। वो सीढ़ी से उतर रहा होगा। (उतरते हुए दिखाना है, लेट जाता है)

  अब वो दरवाजा खटखटायेगा (दरवाजा खटखटाता है)

  अंदर आकर बोलेगा, जरूरी काम है डैड, हम दोनों को जाना है। आने में देर हो जायेगी।

मनू- (अंदर आता है) जरूरी काम है डैड, हम दोनों को जाना है। आने में देर हो जायेगी।

पिता- तो?

मनू-  तो क्या वो दरवाजा बंद कैसे……

पिता- उसकी जरूरत नहीं, मेरा दोस्त तुम लोगों के आने तक यहीं है।

मनू-  पर हमें तो सुबह हो सकती है।

पिता- कोई बात नहीं वो सुबह तक यहीं मेरे पास रहेगा।

मनू- हैं…सुबह तक!

पिता- हाँ सुबह तक, कोई परेशानी।

मनू- नहीं…..पर….पुराने दोस्त हैं…..

पिता- क्यों ??

मनू- नहीं पहले कभी देखा नहीं।

पिता- तुमसे क्या? दौस्त है..तो है….

मनू-  ठीक है…अच्छा है… तो हम जायें?

पिता- रोका किसने है…मैंने तो कभी मना नहीं किया…जाओ। (बेटा जाता है)

थोड़ा सहारा दो बैठ कर आराम से बातें करते हैं।

चोर-  अपने आप कोशिश करो। (कोशिश करता है)

  हाँ..हाँ उठिये..कोहनी का सहारा लेकर …..बढ़िया…..बहुत बढ़िया (उठ जाता है)

  ये हुई ना बात।

पिता- (हाँफता है) यार सही में उठ गया। तुमने तो कमाल कर दिया। 

चोर- कमाल तो आपने किया….अब बैठे-बैठे पैर नीचे करो। (नीचे करता है) 

हाँ ऐसे, अब खड़े हो जाओ। (कोशिश करता है)

पिता- ओह….आह….घुटने में दर्द हो रहा है।

चोर-  लाओ हल्का सा दबा देता हूँ। (दबाता है)

  चल फिर से कोशिश करो। एक बार खड़े हो जाओ तो…।

पिता- तो घुमाने ले चलोगे?

चोर-  हाँ-हाँ क्यों नहीं। चलिये कोशिश करिये। (कोशिश करके खड़ा हो जाता है)

ये बात…मार लिया……मैदान……अब थोड़ा चलने की कोशिश भी करो।

(पैरेलल शॅाट्स में चोर को मालिक की वर्जिश करते हुए, हंसी-मजाक करते हुए, कैरम खेलने की कोशिश करते हुए, चलने की कोशिश करते हूए दिखाना है।)

पिता-  (कैरम खेलते हुए) यार अभी उंगलियाँ उतनी फ्री नहीं हुई हैं, नहीं तो क्वीन कवर तो हो ही जाता।

चोर- अब जाने भी दीजिये, क्वीन तो मैं ले ही लूंगा।

पिता- रहने दो मेरा रिकॉर्ड रहा है, क्वीन मेरी ही हुई है।

चोर- जब होगी तब होगी..अभी तो मेरी होगी।

पिता- यार मेरी क्वीन कहती थी…क्या कैरम की क्वीन के पीछे पड़े हो, मैं क्या किसी क्वीन से कम हूँ।

चोर- अच्छा! तुम उन्हें क्वीन कहते थे।

पिता- हाँ, क्वीन। दीवानगी तो क्वीन की ही थी वो भी एक नहीं दो। 

चोर- दो क्वीन!

पिता- हाँ एक अपनी और दूसरी कैरम की क्वीन की

चोर- अच्छा।

पिता- हाँ कैरम खेलते वक्त क्या पान का बीड़ा लगाकर देती थी। मजा आ जाता था।

चोर- पान का शौक है तुम्हें।

पिता- बहुत…..अब तो मुद्दत हो गई। 8 साल 8 महीने 16 दिन हो गये मुझे पान खाये। जबसे वो परलोक सिधारी, तब से पान नहीं खाया। अब तो मेरे दांत भी झक सफेद हो गये हैं।

 

दृश्य 6

(चोर कमरे में दाखिल होता है। मालिक कुर्सी पर बैठा है।)

पिता- आ गये।

चोर-     हूँ।

पिता- लाए?

चोर- क्या?

पिता- पान!

चोर- पान?

पिता- हाँ भई पान। तारीफ के इतने कशीदे पढ़े थे नुक्कड़ की पाने की दुकान के.. लाये क्यो नहीं?

चोर- वो तो आपको वहाँ चलना पड़ेगा।

पिता- मैं…अरे यार मजाक छोड़ो ऐसा केसे हो सकता है।

चोर- कोशिश करो तो सब कुद हो सकता है…चलो…उठो…आते हैं।

पिता- सही में…चलूँ!

चोर- और क्या…… (उसकी मदद करता है)

पिता- पैसे ले लो…वहाँ रखे हैं…ओह दर्द होता है।

चोर- पैसों की चिन्ता मत करो…मेरे पास हैं ना।……चलो धीरे-धीरे कदम बढ़ाओ।

(दोनों चलते हुए बाहर आते हैं। दरवाजा खोलकर बाहर जाते हैं। दोनों को सड़क पर जाते, पान दुकान पर हंसी मजाक करते हुए दिखाना है। पैरेलल शॅाट्स में बेटा-बहू को परेशान हाल यहाँ-वहाँ पिता को ढूँढते हुए दिखाना है।)

साधना- आखिर डैड जा कैसे सकते हैं। ना जाने क्या हुआ है।

मनू- परेशान हो गया हूँ मैं तो। कुछ उल्टा सीधा हो गया तो लोग कहेंगे बेटा…

बेटा…बाप को खा गया।

साधना- चलना फिरना तो दूर, हिल डुल नहीं सकते, जायेंगे कहाँ

मनू- क्या पता।

साधना- कुछ गड़बड़ तो नहीं हुई

मनू- मतलब…….तुम…हाँ…हाँ…हो सकती है…बिल्कुल हो सकती है…वो उनका दोस्त.. ….वो उचक्का, जरूर उसने डैड को किडनैप कर लिया है। पक्का फिरौती मांगेगा। हे भगवान…

साधना- ना जाने क्या हुआ है, कहाँ हें, कुछ समझ में नहीं आ रहा है।

(घंटी बजती है। बेटा दरवाजा खोलता है, दोनों अंदर आते हैं।)

मनू- आप…आप कहाँ चले गये थे?

साधना- हम लोग यहाँ इतने परेशान थे। जाना था तो कम से कम बता कर तो जाते।

मनू- (आश्चर्य से) लेकिन आप…आप चल रहे हैं….? ये कैसे हुआ?

साधना – हाँ आप तो बिस्तर पर …करवट भी नहीं ले….

मनू- आप..आप. गये कहाँ थे…

पिता- नुक्कड़ पर…पान खाने (चोर से) चलो अंदर चलते हैं। 

(जाते जाते) और हाँ ये लो पान खा लो…..उदल के यहाँ से लाया हूँ, बढ़िया है… खायेगा तो शायद तुझे माँ की याद आ जाए। 

(कमरे में चले जाते हैं, बेटा पान पकड़े मुँह फाड़े पिता को सहारा लिये जाते देखता है।) 

मनू- ऐसा कैसे हो सकता है।

साधना- हाँ ये तो उठ भी नहीं पाते थे।

मनू- पान खाने चले गये..वो भी पैदल।

साधना- हाँ और हमारे लिये भी लेकर आये…दो पान लाये हैं ना…

मनू- हाँ…दो

साधना- मतलब एक मेरे लिये है।

मनू- हाँ……लेकिन ऐसा कैसे हो गया। मैंने तो आज ही डॉक्टर को बताया है कि तबियत में कोई सुधार नहीं है।

साधना- जरूर उनके दोस्त डॉक्टर होंगे। उनकी दवाई ही लगी है। 

मनू- भगवान जाने ये जो भी हो रहा है..ठीक ही है..चलो तुम तो तैयार हो, मैं तैयार हो कर आता हूँ। रस्तोगी के यहाँ पार्टी में जाना जरूरी है। साले से उधार ले रखा है…अच्छा सा गिफ्ट देना होगा, मैं आता हूँं।

साधना- वो मेरा पान देेते जाओ।

(दोनेां पान ले लेती है। मनू को सीढ़ी चढ़ते फिर टाई ठीक करते सीढ़ी से उतरते हुए दिखाना है। बहू चाव से पान चबा रही है)

मनू- मैं डैड को बोल कर आता हूँ।

साधना- हूँ ऽऽ।

(बेटा अंदर जाता है, अंदर मालिक और चोर केरम खेल रहे हैं।)

पिता- ये गोटी इस बार जरूर ले लूंगा।

(बेटा आश्चर्य से देख रहा है)

थोड़ी प्रेक्टिस हो जाये फिर देखना मेरा गेम।

मनू- डैड

पिता- (उसको देखता है) पार्टी में जा रहा है…देर हो जायेगी…आप दवा खा कर सो जाइयेगा। 

ठीक है..ठीक है…तू जा।

मनू- लेकिन डैड…..आप कैरम खेल ले रहे हैं।

पिता- क्यों मेरे कैरम खेलने पर मनाही है क्या? (चोर से) देख इसे थर्ड पॉकेट में लेता हूँ।

चोर- सवाल ही नहीं उठता, थर्ड पॉकेट में तो नहीं जायेगी।

पिता- जायेगी…देख दिखाता हूँ।

चोर- (बेटे से) क्यों तुम बताओ जायेगी ये थर्ड पॉकेट में।

मनू- नहीं…नहीं डैड, आप इसे रिबाउण्ड में ही लीजिये। ये इससे डैश करके पॉकेट में चली जायेगी।

पिता- ऐसा (मारता है…गोटी नहीं जाती) हो गया ना सत्यानाश…नहीं गई…एक चांस बेकार हो गया।

मनू- पर डैड..आप ठीेक से सही मारते तो…

पिता- रहने दे अपने आइडिया अपने पास रख…ऐसे आइडिया दे रहा है कि बस…

चोर- (चोर मनू से) यार तुम तो अपने डैड को बताते जाओ…….ये ऐसे ही हारंेगे।

मनू- मतलब…है….माने मेरे आइडिया सब फालतू हैं…मैं डैड को हरवा रहा हूँ

पिता- (हंसता है) चल बता ये अगली चाल में क्वीन ले सकता है। यहाँ से इसे हटाना है, क्या करें।

  (बेटा बैठ जाता है, कुछ बताता है, पैरेलल शॅाट्स…बेटा भी पिता की तरफ से स्ट्राइक लेता है, गोटी जाती है। बाहर बहू दूसरा पान भी खा जाती है। घड़ी देख रही है…..अंदर आती है… तीनों को कैरम खेलते देखती है) 

साधना- आप यहाँ कैरम खेल रहे हैं और मैं वहाँ आपका इंतजार….

मनू- बस दो मिनट ये क्वीन कवर करवा दूं, फिर चलते हैं।

साधना- लेकिन रस्तोगी जी के यहाँ…फिर गिफ्ट भी तो लेना है।

मनू- बस बस चला….ये क्वीन कवर…डैड ….मैं लेता हूँ कवर (मारता है…कवर हो जाता है) ये मारा क्वीन तो हुई अपनी।

चोर- तुम्हारी क्वीन तो तुम्हारे बगल में खड़ी है। (बहू शरमा जाती है) चलो क्वीन तो तुमने ले ली, पर बोर्ड तो मेरा है। (गोटी लेता है)

मनू- मैं पूरा खेलता तो……..बोर्ड तो मेरा ही होता।

चोर- तो खेल लो…..देख लेते हैं बोर्ड किसका होता है।

मनू- ऐसा तो हो जाये।

साधना- लेकिन पार्टी में देर…

मनू- बस चलते हैं, एक बोर्ड की बात है। (चुटकी बजाते हुये) टाइम नहीं लगेगा।

चोर- ठीक है तुम और तुम्हारे डैड, मैं और हमारी बहू।

साधना- मैं…..मुझे तो ठीक से नहीं आता।

पिता- भई इनसे पहले से ही पूछ लो…खेलना चाहें तो ठीक है…स्वागत है….लेकिन पार्टी के नाम पर आधे में बोर्ड नहीं छोड़ सकते।

चोर- हाँ भई खेलेंगे तो पूरा, नहीं तो नहीं।

साधना- चलिये देखते हैं (चोर से) आप ठीक ठाक खेल लेते हैं ना।

चोर- इनसे तो अच्छा ही खेलता हूँ (बोर्ड लगाता है)

मनू- अरे छोड़िये…कैरम का चैंपियन हूँ चैंपियन…….

पिता- तुम लोगों को तो किसी के यहाँ जाना था, देर तो नहीं हो रही।

चोर- अब थोड़ी देर भी हो जाये तो क्या…आखिर वहाँ भी मदरवल करने जा रहे थे, यहाँ भी तो मदरवल ही कर रहे हैं।

मनू- बस ये बोर्ड पूरा हो जाये। 

(लगातार खेल रहे हैं। चोर और बहू को जीतते दिखाना है।)

साधना- (पिता से) आपका खाना लगा देती हूँ।

मनू- सुन ना बल्कि ऐसा कर अपना भी बना ले। आज रस्तोगी के यहाँ पार्टी कैंसिल कर देते हैं। एक बोर्ड और खेलेंगे।

पिता- वाकई…तू रात में यहीं रुकेगा…मतलब कहीं पार्टी-शार्टी में नहीं जायेगा।

चोर- अब उसकी इच्छा है रुकने की तो रुकने दो..आज की पार्टी यहीं हो जाये।

साधना- तो फिर…

चोर- फिर क्या..कुछ बनाते हैं, वैसे भी तुम्हारे ससुर तुम्हारी पाक विद्या की बहुत तारीफ करते हैं।

साधना- वो तो ऐसे ही कहते रहते हैं…बस यूं ही थोड़ा बहुत बना लेती हूँ।

चोर- नहीं नहीं तुम खाना तो बहुत अच्छा बनाती हो, उस दिन छोले तो बहुत बढ़िया बने थे।

साधना- तो क्या बना लूँ?

चोर- बना लूँ..अरे बनाते हैं..मिल कर बनायेंगे।

मनू- पर मुझे तो कुछ भी बनाना नहीं आता।

चोर- तुम यहीं अपने डैड के पास बैठो, थोड़ी और प्रैक्टिस करो। अगले बोर्ड के लिये ऑल द बेस्ट। मैं और बहू जल्दी से कुछ बनाकर लाते हैं। चलो किचन कहाँ है? 

(दोनों को किचन जाते, कुछ पकाते. लाते-खाते-खेलते दिखाना है।)

(बहू बीच बीच में सिर पकड़ती है)

चोर- क्या हुआ सिर में दर्द है।

साधना- हाँ काफी समय से है। हल्का सा ही होता है। टेबलेट लेने से ठीक हो जाता है।

चोर- तुमने आखिरी बार सिर में तेल कब लगाया था?

साधना- तेल…सर मे.. (सोचती है) शायद चार-पाँच साल हो रहे होंगे।

चोर- अच्छे से सर में तेल लगाकर कस के चोटी बांध लो…देखो अभी ठीक हो जायेगा।

साधना- ऐसा कल लगाती हूँ सवेरे नहाने के पहले।

चोर- क्यों…अभी क्यों नहीं?

बहू- ये खाना वगैरह….

चोर- ये वगैरह वगैरह मैं निपटाता हूँ, तुम बालों में तेल लगाओ…जाओ।

(जाते हुये फिर बालों में तेल लगाकर चोटी बांधे हुये आते दिखाना है। सब देखते हैं आश्चर्य से)

मनू- अरे ये क्या कर लिया? (बहू शरमाती है)

पिता- लेकिन एक बात बताऊँ, जब तुम्हें शादी के पहले देखने आये थे, उस दिन से भी ज्यादा अच्छी लग रही हो। (सब हंसते, खेलते, मस्ती करते रहते हैं)

चोर- (घड़ी देखते हुये) काफी देर हो गई है, मुझे चलना चाहिये। वैसे आज का दिन या यूं कहें रात मेरे जीवन की सबसे बढ़िया रात थी। बहुत अच्छा लगा।

पिता- अरे इतनी जल्दी भी क्या है..अभी तो मेरे बेटा-बहू के आने का वक्त ही नहीं हुआ…अभी दो ही तो बजे हैं।

चोर- कुछ देर सो लेंगे…मुझे भी काम है…जरूरी काम है….मुझे निकलना चाहिये।

साधना- अभी रात को…इतनी रात को क्या काम करेंगे। एक बोर्ड और हो जाये।

मनू- हाँ अब इतनी रात को क्या काम करेंगे..एक बोर्ड और हो जाये।

साधना- ये बोर्ड हार गये तो क्या हुआ..अगला जीत जायेंगे।

चोर- नहीं वो बात नहीं है। दरअसल काम ही कुछ ऐसा है…जाना ही पड़ेगा…मुझे इजाज़त दीजिये..मैं चलता हूँ।

पिता- कल आओगे ना?

साधना- हाँ कल आइयेगा।

मनू- वैसे भी कल कोई पार्टी नहीं है। छोटी सी है पर जरूरी नहीं है।

चोर- ठीक है…कल आता हूँ…मगर कल आलू के पराठे खिलाओगी।

साधना- बिल्कुल..लेकिन आप वही वाला पान लाओगे।

चोर- (हंसता है।े) क्वदमण्ण्ण्ण्( पिता से) आपकी क्वीन का शौक मनू की क्वीन को भी लग गया। चलिये कल मिलते हैं व्ण्ज्ञण्…ठनल…..(जाता है)

 

दृश्य-7

(बाप-बेटा-बहू तीनों बैठे हैं, चाय पी रहे हैं। चाय का चौथा कप खाली रखा है। बार बार घड़ी देखते हैं। कैरम अब ड्राइंग रूम में लगा हुआ है। बाप बेटा ऐसे ही गोटियाँ मार रहे हैं। क्रॅास डिसॉल्व में साधना को किचन का काम करते, आलू उबालते, चाय लाते ले जाते दिखाना है। उसने तेल लगाकर कस कर चोटी बांध रखी है। धीरे धीरे सोफे पर ही सब लोग सो जाते हैं। हल्की सी आहट पर पिता चौंक जाता है और खिड़की की तरफ देखता है, फिर निराशा से अधलेटा हो जाता है।

 

 

दृश्य-8

(सुबह का समय…बेटा अखबार लिय हुये पिता के पास आता है…चेहरे पर घबराहट है… बहू भी पीछे पीछे आती है)

मनू- डैड..आपका वो…वो…दोस्त…

पिता- क्या हुआ उसको?

मनू- उसकी अखबार में तस्वीर छपी है।

पिता- है ही ऐसा वो..समाजसेवी….ऐसे लोगों का तो सम्मान होना ही चाहिये।

मनू- (थोड़ी देर उनको देखता है) आपके दोस्त का नाम क्या है?

पिता- नाम…ओ…नाम…ना…..ना…….म

मनू- मैं बताता हूँ, आपके दोस्त का नाम चमनलाल है…. उर्फ नटवरलाल…उर्फ….. शोभराज उर्फ.

पिता- क्या बक रहे हो…..!

मनू- और वो कोई समाजसेवी नहीं …चोर है चोर। कल ही रात पकड़ा गया है…ये देखिये…… (अखबार देता है, पिता पढ़ता है) और काफी समय से पुलिस उसे तलाश रही थी।

साधना- डैड अब सच सच बताइये आप उसे कैसे जानते हैं।

मनू- और कब से? बात बढ़ी तो पुलिस यहाँ भी पहुँच सकती है उससे संबंध रखने के जुर्म में।

साधना- मुझे तो तभी शक हुआ था, जब उन्होंने मेरे छोले की तारीफ की थी। उस दिन तो वो घर आये ही नहीं थे। 

(चोटी खोल देती है)

पिता- (धीरे से) हाँ वो चोर ही है, यहाँ भी चोरी करने ही आया था।

मनू- तो आपको बताना था।

पिता- कब बताता, किसको बताता। एक गिलास पानी पिलाने का वक्त भी नहीं था तुम्हारे पास। कब बताता!

साधना- पर कुछ ऊँच-नीच हो जाती तो, आजकल किसी का कोई भरोसा नहीं।

पिता- ठीक कहती हो, अपनों का ही भरोसा नहीं, पराये तो फिर….

साधना- मेरा वो मतलब नहीं था..पर कोई चोर…….

पिता- हाँ चोर, ऐसा चोर जो प्यासे को पानी पिलाता है, बीमार को दवाई देता है, दूसरों के कष्ट को अपना समझता है, किसी बुजुर्ग में अपने स्वर्गीय पिता की 

छवि ढूँढता है, मौत की चाह रखने वाले को जीने की ललक देता है, बिछड़े 

हुये लोगों को मिलाने की कोशिश करता है, दूर हो चुके दिलों को पास 

लाता है, अपने से जुदा हो चुके लागों के घावों पर मरहम लगाता है। वो चोर 

ही है, बिल्कुल चोर ही है वो उसने मेरा गम चुरा लिया, मेरे कष्ट चुरा लिये, 

तकलीफ चुरा ली, सबसे बड़ी चीज़ मेरा दिल चुरा लिया।

(दोनों सिर झुकाये बैठे हैं, पिता थोड़ा खाँसता है, बहू पानी देती है, बेटा सहारा देता है)

ऐसे ही बिल्कुल ऐसे ही जब तुम दोनों पार्टी में चले गये थे, उसने सहारा दिया था और बिल्कुल ऐसे ही पानी पिलाया था। उसमें मुझे मेरा बेटा नजर 

आया था और शायद उसे उसका पिता। वो चाहता तो तो मुझ जैसे बुजुर्ग- बीमार-असहाय को ठिकाने लगाकर आराम से पूरा मकान खाली कर देता, 

पर उसने पिता से दूर हो चुके बेटा-बहू को करीब ला दिया। ये चोर ही था 

जिसने इस मकान को घर बना दिया…..

(फेड आउट)

 

दृश्य-9

(बेटा-बहू तैयार होकर पिता के कमरे में आते हैं, दोनों बहुत गंभीर हैं)

मनू- डैड मुझे जमीन के कागजात चाहिये।

पिता- क्या?

साधना- हाँ बहुत हो चुका अब दे दीजिये।

मनू- जल्दी डैड मुझे बताइये कहाँ रखे है..मैं खुद निकाल लूँगा।

पिता- पर क्यो…अचानक जमीन के कागजात!

मनू- कहाँ रखे है…कहाँ हैं…कागज?

पिता- अलमारी में।

(बहू निकालती है)

मनू- और यहाँ इस पर दस्तखत कीजिये।

पिता- ये क्या है?

मनू- पावर ऑफ अटार्नी

पिता- पर क्यों?

मनू- आप सवाल बहुत पूछते हैं…जल्दी से दस्तखत कीजिये। टाइम नहीं है मेरे पास।

(पिता दस्तखत कर निढाल हो जाता है, दोनों कागजात समेटकर निकल जाते हैं।)

 

दृश्य-10

(बेटा-बहू कमरे में अंदर आते हैं)

मनू- डैड क्या कर रहे हैं?

पिता- क्या कर रहा हूँ…अरे देख नहीं रहा….पड़े पड़े आखिरी घड़ी का इंतजार कर रहा हूँ।

मनू- क्या डैड..आप भी….आइये कैरम का एक गेम हो जाये।

साधना- हाँ डैड चलिये एक गेम हो जाये।

पिता- हैं…कैरम…हो क्या गया है तुम दोनों को! कभी जमीन के कागज मांगते हो… कभी पावर ऑफ अटार्नी में दस्तखत लेते हो, कभी कैरम खेलने की बात करते हो।

मनू- अब उठिये भी, बड़ा मन हो रहा है आपके साथ कैरम ख्खेलने का।

साधना- हाँ और मैंने पान भी मंगवा रखे हैं उदल के यहाँ से।

पिता- पान!!

साधना- हाँ…..एक एक पान और उसके बाद कैरम..मजा आ जायेगा…चलिये उठिये। 

(दोनों थोड़ा सहारा देते हैं।)

पिता- अजीब बात है…अपनी मर्जी का करते हो… अरे मुझे नहीं है इच्छा कैरम खेलने की, तो भी खिलाओगे।

(लेकर ड्राइंगरूम में आते हैं)

अपनी मर्जी से शायद मर भी नहीं सकता।

मनू- फिर गलत बात…बस एक गेम……

पिता- पर तीन लोग कैसे…..

साधना- है ना चौथा..मेरा पार्टनर

पिता- कौन…..?

मनू- आपके दोस्त….

(चोर सोफे पर सिर झुकाये बैठा है)

पिता- अरे तुम…यहाँ कैसे?

(हड़बड़ी में उसके पास चला जाता है, लड़खड़ाता है, चोर उठकर उसे संभालता है, गले मलता है।)

मनू- और डैड ये रहे आपके जमीन के कागजात और पावर ऑफ अटार्नी।

साधना- जमानत के लिये जरूरत थी, इसलिये मांगे थे। सॉरी डैड जो हुआ वो….

(पिता बहू को कागजात देगा)

पिता- बेटा ये अपनी जमीन के कागजात तुम रखो, संभाल के रखना…अब कहाँ तक इसका बोझ उठाऊँगा। लो रख लो।

साधना- पर डैड!!

चोर- अब रख भी लो…इनको फ्री रहने दो…..स्वतंत्र उड़ने दो….परिवार का लुत्फ लेने दो। और मनू..साधना…थैंक यू। वैसे तो शायद मुँह दिखाने के काबिल भी 

नहीं हूँ।

मनू- आप भी…अब छोड़िये इन बातों को।

चोर- फिर भी जब पता चल ही चुका है, सच्चाई मालूम हो चुकी है तो…..

साधना- ईमानदारी से कहें तो थैंक्स तो कायदे से हमें आपको देना चाहिये।

पिता- यार ये धन्यवाद का आदान प्रदान बाद में करते रहना पहले …….

मनू- …एक गेम हो जाये।

(सब खेलते हैं)

पिता- (खेलते खेलते) अब क्या करोगे?

चोर- पता नहीं।

पिता- मेरे साथ रहो।

चोर- क्या करूँगा?

पिता- मेरी देखभाल और क्या।

चोर- देखभाल के लिये बेटा और बहू तो हैं।

पिता- उनकी भी तो देखभाल जरूरी है।

चोर- जेल से वापस आऊँगा तब सोचूँगा।

पिता- ज्यादा दिन की बात नहीं है…जल्दी छूट जाओगे।

चोर- देखते हैं।

(प्रथम दृश्य बवदजपदनमण् चोर को तमबमपअम करते हैं। भ्वउम इंबा बमतमउवदमलण्द्ध)

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